Wednesday, June 17, 2015

पत्रकार या तो बने दलाल वरना हो हलाल !





देश के अलग -अलग हिस्सों से यह खबर हमेशा सुनने को मिलती है कि फ़ला अखबार का फ़ला पत्रकार की हत्या हो गई या कुछ लोगों ने की पत्रकार की पिटाई । जी, हम ऐसा सुनने के आदि हो गये है जिस वजह से उस पिटे हुए या मार दिए गए पत्रकार को खबरों में ना तो जगह दिला पाते हंै और नाहि न्याय । यह त्रासदी आज की नहीं हैं देश के इतिहास के साथ ही बढ़ती चली आ रही हैं।  इस लेख को लिखने का कारण भी यहीं हैं कि अब पत्रकारों पर हो रहे हमले नाकाबिले बर्दाशत हो चलें हंै ।  लंदन के एक मीडिया इंस्टीटूयट के अनुसार विश्व भर में पत्रकारों के लिए चैथा सबसे खतरनाक देश भारत माना गया हैं । साल 2013 में  भारत में 11 पत्रकारांे को मौत के घाट उतार दिया जाता हैं तो वहीं साल 2014 में विश्व भर में 61 पत्रकारों की जान ले ली जाती हैं । ये बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि जनता के हित के लिए खबरनवीश का काम करने वाला आदमी उसी समाज के किसी वर्ग द्वारा मार दिया जाता हैं । बात मुंबई हमले की हो या करागिल की पत्रकार सबकुछ दांव पर लगाकर रिपोर्टिंग करता है । हाल की ही बात करें तो छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश तक पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं लेकिन सरकार कड़े कदम उठाने के जगह कड़ी निंदा करती है । मामला दबाने कि बात हो या खबर ना प्रकाशित करने के लिए पत्रकार पर हर तरीके से जोर आजमाइश  की जाती हंै लेकिन उसके बावजूद भी अगर बात नहीं बने तो पत्रकार को अपने जान से हाथ धोना पड जाता हैं।  हाल ही में उत्तर प्रेदश के शांहजाहानपुर में एक पत्रकार को जिंदा जला दिए जाने की घटना सामने आई । मामले कि पड़ताल करने पर पता चला कि पत्रकार  ने मरने से पहले लगातार न्यू मीडिया के जरीए मंत्री के कई कारनामो की पोल पट्टी खोल रहा था जिसके लिए उसे ऐसा ना करने की धमकी मिल रहीं थी लेकिन अपने जिम्मेदारीयों से समझौता ना करने की ऐवज में मंत्री के आदेश पर स्थानीय कोतवाल द्वारा पत्रकार को जिंदा जला दिया गया। इन बातों को कहने वाला कोई और नहीं बल्की मृतक पत्रकार ही हंै । मरने से पहले उसने एक वीडियो संदेश में ये बातें कही थी । इस घटना को घटे कुछ दिन ही हुए थे कि तभी एक कानपुर के पत्रकार को भी कुछ बदमाशों ने गोली मार दी ।  बताया जा रहा है कि इस पत्रकार ने कुछ लोगों द्वारा संचालित गलत काम का खुलासा कर दिया था जिसके बाद इस घटना को अंजाम दे दिया गया । अगर हम वर्चुअल वर्ल्ड की भी बात करें तो वहां भी ऐसे लोगों की तदाद बहुत मात्रा में है जो लगातार पत्रकार द्वारा लिखे गये लेख या उनके द्वारा रखी गयी बात पर जबरदस्त विरोध करते है और स्भयता की सारी हदे लांघ जाते है  । सोशल साइटस पर गाली गलौज करने वाले अक्सर वही लोग होते है जो किसी ना किसी राजनीतिक दल के घोर समर्थक होते है या किसी एक विचारधारा के गुलाम । अब सवाल यह है कि आप ,हम और सरकार वर्चुअल दुनिया में ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकते लेकिन वास्तविकता की दुनिया में हो रहें पत्रकारों पर हमलों को रोका ना गया या फिर ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया तो  जनता के सरोकार के लिए काम करने वाला पत्रकार पहले अपने जान कि सोचे या फिर उस समाज की जो उसके मारे जाने पर गहरा दुख तो प्रकट करती है लेकिन बात वहीं तक सीमित रह जाती हैं। सरकारें अगर ऐसे ही बेफिक्र रहती हैं तो क्या ये समझा जाये कि पत्रकार अपनी जिम्मेदारीयों को छोड़ दलाली पर उतारू हो जाये और अपनी जान बचाये या फिर जनता के सरोकार का काम करते हुए गलत लोगों के हाथो हलाल हो जाये और अपने परिवार को अधर में छोड़ जाये । जरा सोचें,क्या ऐसे में जनता का लोकतंत्र बच पाऐगा !