नोटबंदी का फैसला कितनी दूर तक मार करेगा
ये कहना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगी लेकिन मौजूदा सिस्टम के हालात को देखकर ये तो जरूर
कहा ही जा सकता है कि नोटबंदी से आम जनता खुश तो है लेकिन व्यवस्था से भरपूर नाराज़
। कहीं 5 दिन बाद किसी एटीएम
में पैसे आ रहे है तो कहीं पैसों के दर्शन ही दुर्लभ है क्योंकि एटीएम इतने दूर के
इलाके में है कि रोज उसमें पैसे डाले नहीं जा सकते ।बात देश के किसी भी राज्य की
क्यों न हो हालात तो सबके एक जैसे ही है । आप अपने हिसाब से किसी राज्य का सैंपल
तो ले सकते है लेकिन लापरवाह सिस्टम के हालात एक जैसे ही होंगे । नोटबंदी के बाद
बीते दिनों हमारा झारखंड जाना हुआ था । शहर के हाल जितने खराब है उससे कही ज्यादा बुरा
हाल ग्रामीण इलाकों का है। वहा 1 से 2 लाख की आबादी पर 1 बैंक है ।आप जरा अंदाजा लगाइये ही हर रोज
अगर बैंक के बाहर 5 हज़ार लोग खड़े हो तो कैसा मंजर होगा । क्या आपको डर नहीं लगेगा ? बैंक में काम करने
वाले कर्मचारी किस दबाव में काम कर रहे होंगे इस बात का आप अंदाजा लगा सकते है ।
वहा की पुलिस पर कैसा दबाव होगा आप इस बात का भी अंदाजा लगा सकते है कि कैसे 10 से 20 पुलिस वालों को
हज़ारों की भीड़ को संभालना पड़ेगा । क्या पीएम ने नोटबंदी का फैसला लागू करने से
पहले ऐसी परिस्थितियां होंगी ये सोचा था ? अगर सोचा तो फिर व्यवस्था क्यों नहीं हो
पाई ,और इन अव्यवस्थाओं
का जिम्मेदार कौन है ? अगर सोचा नहीं तो फिर जिस ग्रामीण क्षेत्र ने पीएम को आपार
समर्थन दिया उसका ख्याल पीएम को क्यों नहीं आया? झारखंड जाने के बाद हमारी मुलाकात हमारे
परिचित पवन जी से हुई जिनकी शादी थी ।शादी के घरों के खर्चे का अंदाजा तो आप
सबको होगा ऐसे में आप उनके हालत को बखूबी समझ भी सकते है । हमने उनसे उस दौरान बात
भी की और उनके तकलीफ को समझने की कोशिश भी की ।
बहरहाल , हम वापस लौट कर सत्ता के गलियारे दिल्ली की बात करते है ।जहाँ सत्ता को चलानेवालो से लेकर सत्ता की दलाली खाने वालों का अड्डा होता है ।नोटबंदी के फैसले पर पीएम ने देश से 50 दिन मांगे थे और लोगों ने पीएम की इस अपील को स्वीकार भी किया । पीएम ने कहा कि इस फैसले को टॉप सीक्रेट के तौर पर लागू किया गया ताकि चोरो को इसकी भनक नहीं लग पाएं । अब सवाल यही से खड़ा होता है कि क्या ये वाकई सीक्रेट था या बीजेपी को इसकी जानकारी थी ? क्योंकि नजर डाला जाएं तो 6 नवम्बर को बीजेपी के एक नेता संजीव कंबोज ने ट्वीट करते हुए कहा कि rbi जल्द 2 हजार के नोट लागू करेगी । साथ में उन्होंने तस्वीर भी साझा की ।
इतना ही नहीं नोटबंदी के बाद 2000 के नए नोटों की खेप
गुजरात से लेकर बंगलोर और मनाली तक में पकडे गये और इनके पास नए नोटों की खेप
लाखों से लेकर करोडों तक में थी ।हाल में ही में बीजेपी नेता मनीष और कोल माफिया के पास से 33 लाख के नए नोट जब्त हुए,लेकिन देखा जाये तो
सरकार ने देश की किसी आम नागरिक को 1 हफ्ते में 24 से ज्यादा निकालने की अनुमति दी ही नहीं
है। गोवा में 1.5 करोड़ और तमिलनाडु के सीएम पनीरसेल्वम के करीबी के पास से 70 करोड़ और 100 किलो सोना का पकड़ा
जाना क्या बताता है । इसके दो पहलू है कि इस देश का एक सिस्टम तो चोरी करने में
मदद कर रहा है तो दूसरा उसे दबोच भी रहा है । बिज़नस क्लास से लेकर दूतावास तक
हफ़्ते में 50 हज़ार से ज्यादा निकासी नहीं कर सकते ।शादी वालो को 2.5 लाख का प्रवधान दिया
गया है लेकिन नियम ऐसे की आप उसे पूरा ही नहीं कर पाएं । सरकार ने शादी का पैसा
उसे ही कैश में देने की अनुमति दी है जो साबित करें की उन्हें जिन्हें पैसा देना
है उसके पास खाता नहीं है । सरकार ने 8 नवम्बर नोटबंदी के एलान के बाद से अपने फैसले में छोटे बड़े कुल 27 बदलाव किये है ,लेकिन सवाल नियमों
में बदलाव से ज्यादा उस व्यवस्था को लेकर है जिसमे भेदभाव नजर आ रहा है ।बिहार के
ही एक पत्रकार ने ये खुलासा किया कि बीजेपी ने बिहार में बड़ी मात्रा में नोटबंदी
से पहले कैश देकर जमीनों की खरीद की ,फ़िलहाल खुलासे के बाद से जांच के आदेश हुए
है । बीजेपी नेता के पास से नए नोटों की खेप हो या नोटबंदी की पहले से ही जानकारी
क्या ये संयोग मात्र है ?गौर किया जाए तो कालाधन की बात करते करते अब सारी की सारी
डिबेट कैशलेश इकॉनमी पर हो रही है ? नोटबंदी से कालाधन सरकार के खाते में नहीं
आता देख सरकार ने 50-50 स्कीम के तहत अपना काला धन वैध कर सकते है यानि वाइट मनी में
कन्वर्ट कर सकते है । कैशलेस इकॉनमी का जो मॉडल कालेधन के खिलाफ बनाने की कोशिश हो रही है वो कितना सटीक बैठता है इसका तो बाद
में पता चलेगा लेकिन सवाल तो ये है कि क्या हम वाकई कैशलेस इकॉनमी में फिट बैठते
है ? क्या कैशलेस होने से
हमारे देश में टैक्स की चोरी रुक जाएगी ?क्या कैशलेस लेनदेन में काला बाजारी नहीं
होगी ? तो फिर इसका जवाब भी
सुन लीजिए,जी नहीं । कैशलेस
लेनदेन में चोरी करना बड़ी मछलियों के लिए और भी आसान होगा और बैंको को जो फायदा
होगा, ऑनलाइन पेमेंट करने
वाली कंपनयियों को फायदा होगा वो तो होगा ही । अमेरिका में 30 से 32 लाख करोड़ की सालाना टैक्स चोरी होती है. जिस तरह भारत
में आयकर विभाग है, उसी तरह अमेरिका के
इंटरनल रेवेन्यू सर्विस की एक रिपोर्ट इसी साल अप्रैल में छपी है, जिसके अनुसार 2008 से 2010 के बीच हर साल
औसतन 458 अरब डॉलर की टैक्स चोरी हुई है. अगर मैंने इसका भारतीय मुद्रा में सही
हिसाब लगाया है तो अमेरिका में 30 से 32 लाख करोड़ रुपये सालाना टैक्स चोरी हो
जाती है. यह आंकड़ा इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में नोटबंदी के बाद से कैशलेस का ऐसा प्रचार किया जा रहा है, जैसे यह हींग की गोली है, जो अर्थव्यवस्था की बदहज़मी को दूर कर
देगी. फ्रांस की संसद की रिपोर्ट है कि हर साल 40 से 60 अरब यूरो की टैक्स चोरी
होती है. 60 अरब यूरो को भारतीय मुद्रा में बदलेंगे तो यह चार लाख करोड़ रहता है.
वहां का टैक्स विभाग 60 अरब यूरो की कर चोरी में से 10 से 12 अरब यूरो ही वसूल
पाता है. यानी 30 से 50 अरब यूरो की टैक्स चोरी वहां भी हो ही जाती है. ब्रिटेन
में हर साल 16 अरब यूरो की टैक्स चोरी होती है. भारतीय मुद्रा में 11 हज़ार करोड़
की चोरी. जापान की नेशनल टैक्स एजेंसी ने इस साल की रिपोर्ट मे कहा है कि इस साल
13.8 अरब येन की टैक्स चोरी हुई है. भारतीय मुद्रा में 850 करोड़ की टैक्स चोरी
होती है. 1974 के बाद वहां इस साल सबसे कम टैक्स चोरी हुई है.मान लीजिए कि पूरी
आबादी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लेन-देन करती है तो भी यह गारंटी कौन अर्थशास्त्री दे
रहा है कि उन तमाम लेन-देन की निगरानी सरकारें कर लेंगी. क्या यह उनके लिए मुमकिन
होगा. दुनिया में आप कहीं भी टैक्स चोरों का प्रतिशत देखेंगे कि ज़्यादातर बड़ी
कंपनियां टैक्स चोरी करती हैं. आप उन्हें चोर कहेंगे तो वे आपके सामने कई तरह के
तकनीकी नामों वाले बहीखाते रख देंगे. लेकिन कोई किसान दो लाख का लोन न चुका पाए, तो उसके लिए ऐसे नामों वाले बहीखाते नहीं
होते. उसे या तो चोर बनने के डर से नहर में कूदकर जान देनी पड़ती है या ज़मीन
गिरवी रखनी पड़ती है. क्या उनके लिए आपने सुना है कि कोई ट्रिब्यूनल है. 2015 में Independent
Commission for the Reform of International Corporate Taxation (ICRIT) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि
अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट टैक्स सिस्टम बेकार हो चुका है.अब बताइए, जिसकी तरह हम होना चाहते हैं, उसे ही बेकार और रद्दी कहा जा रहा है.
इंटरनेट सर्च के दौरान ब्रिटेन के अख़बार 'गार्जियन'
में इस रिपोर्ट का ज़िक्र मिला है. इतने
तथ्य हैं और रिपोर्ट हैं कि आपको हर जानकारी को संशय के साथ देखना चाहिए. इस
रिपोर्ट का कहना है कि मल्टीनेशनल कंपनियां जिस मात्रा में टैक्स चोरी करती हैं, उसका भार अंत में सामान्य करदाताओं पर
पड़ता है, क्योंकि सरकारें उनका तो कुछ बिगाड़ नहीं
पाती हैं. एक-दो छापे मारकर अपना गुणगान करती रहती हैं. इन मल्टीनेशनल कंपनियों की
टैक्स लूट के कारण सरकारें गरीबी दूर करने या लोक कल्याण के कार्यक्रमों पर ख़र्चा
कम कर देती हैं.
फिलहाल सरकार जो भी
कदम उठा रही है और लोकलुभावन बातें कर रही है उनसे ये तो साफ है कि सच कुछ और है
और दिखाने की कोशिश कुछ और ही हो रही है.सरकार के हर कदम को संशय से देखने की
जरूरत इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये संशय और आपका सवाल करना एक सकारात्मक माहौल
पैदा करेगा जो मजबूत लोकतंत्र की नींव है..सरकार वक्त मांग रही है और लोग देने को
तैयार है लेकिन मौजूदा हालात में सरकार का बयान सच्चाई पर मिट्टी डाल कर उसे
छिपाने की कोशिश मालूम पड़ती है. ये सिलसिला यूं ही जारी रहेगा अगर आप ऐसे ही
मूकदर्शक बने रहेंगे और आपकी छुप्पी भी सच्चाई पर मिट्टी डालने जैसे ही होगी.