सरकार के मंत्री हो या
फिर प्रवक्ता, हर कोई सिर्फ एक ही बात कह रहा है कि वो मुस्लिम महिलाओं की आजादी
के पक्ष में खडें है लेकिन क्या सिर्फ किसी के पक्ष भर में आ जाने मात्र से सारी
समस्याएं हल हो सकती है, सरकार ने जो कानून बनया हो वो 2 पन्नों में समेटा हुआ है,
बिल को देख कर दो बातें कहीं जा सकती है... वो ये कि सरकार ने कानून को बेहद आसान
बनाने का ऐतिहासिक काम किया है या फिर इस कानून को बेहद कम वक्त और हड़बड़ी में
तैयार कर एतिहासिक काम किया गया है... जरा इन सवालों पर अब गौर फरमाइये........
1- विधेयक की
धारा 3 में कुछ विरोधाभास नजर
आता है. इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति का अपनी पत्नी को तलाक देने का ऐलान
करना, चाहे वे शब्द, बोले या लिखें हों या किसी इलेक्ट्रॅानिक फार्म
में या किसी अन्यक तरीके से जो भी हो वो अवैध और शून्य होगा. लेकिन इसी में धारा 2 के खंड ख में ‘तलाक’ को ये कह कर परिभाषित
किया है, ‘फौरी और गैर-वापसी का असर
वाला विवाह विच्छेद’, तो फिर इसी बिल
में इसे शून्य कैसे घोषित किया जा सकता है.
2-
हालांकि बिल
घोषणा करता है कि कानूनी परिभाषा के तहत आने वाला तलाक शून्यत होगा, ये इस तथ्यं को ध्यान में नहीं रखता कि आप कुछ
तब ही शून्या कर सकते हैं जब वो लागू होता है, आप तब तक इसे शून्यो घोषित नहीं कर सकते जब तक आप इसके
शुरुआत से ही शून्यर होने का ऐलान नहीं करते.
3-
या तो तलाक की दी
गई परिभाषा बदली जाए या फिर धारा तीन को बदला जाए. इसका व्यासवहारिक परिणाम ये
होगा कि एक महिला जिसके लिए तीन तलाक का ऐलान किया गया है, उसे अदालत आना होगा ताकि वो इसे पहली नजर में शून्यल घोषित
करवा सके. इसके अलावा दूसरी मुश्किलें भी
हैं. धारा 5 और 6 पॉलिसी बनाने के लिहाज से प्रगतिशील खंड हैं,
लेकिन खराब तरह से लिखे गए हैं. धारा 5 कहती है कि जिस महिला को तलाक दिया जाता है वो
गुजाराभत्ता पाने की हकदार है, और धारा 6 कहती है कि वह अपने नाबालिग बच्चों को अपनी संरक्षा में ले सकती है. लेकिन अगर
तलाक खुद में शून्यत है तो ऐसे मे गुजाराभत्ताज या संरक्षा का सवाल बमुश्किल ही
सामने आता है. ऐसा तब होगा जब तलाक हो ही जाए. अगर पहली वाली बात होती ही नहीं है
तो दूसरी के होने का सवाल ही नहीं उठता.
4-
दो सवाल और...
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक साथ तीन तलाक को गैरकानून घोषित करने के बाद आए
फैसले के बाद तीन तलाक बोलने के जो एक सौ मामले आए उनका क्या हुआ? निश्चित रूप से तलाक तो नहीं हुआ होगा क्योंकि
सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया है।
5-
सो, अगर किसी व्यक्ति के एक साथ तीन तलाक बोलने से
तलाक हुआ ही नहीं तो फिर क्या मामला बनता है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि तीन तलाक बोलने से अब
तलाक नहीं होगा। तो कोई भी व्यक्ति तीन बार तलाक बोल कर अपनी पत्नी को नहीं छोड़
सकता है। अगर छोड़ता है तो उसके खिलाफ महिला के साथ ज्यादती या घरेलू हिंसा की कई
धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। जैसा कि दूसरे धर्मों के लोगों के साथ होता
है। फिर इसके लिए अलग से कानून की क्या जरूरत है?