23 तारीख सुबह 8 बजकर 40 मिनट , फोन पर मैसेज के
मुताबिक अन्ना को 9 बजे तक राजघाट पहुंचना था, राजघाट आम आदमी के लिए बंद कर दिया
गया था. 9 बजे से वक्त आगे की तरफ निकल चुका था और मीडिया जुटनी शुरू हो गई
थी...सभी इंतजार कर रहे थे और कुछ समर्थक भी वहां जुटने लगे थे, मेरी नजर पुलिस पर
थी तो मैने देखा की पुलिस के लकड़ियों में कील लगी तो पटरियां रखी हुई थी मतलब
पुलिस की तैयारी थी कि जरुर कुछ होगा लेकिन क्या एक लोकतांत्रिक देश में कील लगी
हुई लकड़ी की पटरियां किस काम की, ये तो किसी बुरे से बुरे वक्त में भी इस्तेमाल
नहीं किया जाना था, बहरहाल वक्त की सुई 10 पर थी तभी ट्वीटर पर खबर आई की अन्ना
राजघाट के लिए निकल चुके है.कुछ पत्रकार हंसी मजाक तो कुछ इस बात का अंदाजा लगा
रहे थे कि शायद इस बार अन्ना का आंदोलन ज्यादा टिकेगा नहीं और अन्ना किसी किताब
में सीमित रह जाएंगे.. तबतक पुलिसिया सायरन के बीच अन्ना राजघट पहुंचे, अन्ना
लगातार पुलिस को साथ नही रहने की हिदायत दे रहे थे, अन्ना की तस्वीर मीडिया कैमरे
में कैद कर रही थी, अन्ना ने बापू को याद किया तो उनके आंखो सें आंसू निकल आए.वो
बेहद शांत दिखाई दे रहे थे औऱ फिर बापू को फूल चढाने के बाद वो वहीं से चंद कदम
दूर बैठ गए.
अन्ना देश के लिए मर
रहे हैं और लोग उनके साथ सेल्फी के लिए
20 मिनट तक अन्ना आंखे बंद किए वहीं बैठे रहे
लेकिन उनके पीछे बैठे लोगों की हरकत ने बापू की समाधि के सामने ही वो घृणत काम
किया जो किसी भी आंदोलन की हत्या कर देती है. अन्ना के पीछे बैठी महिलाएं और पुरुष
लगातार उनके साथ फोटों खिंचवा रहे थे, अन्ना वहीं जमीन पर आंखे बंद किए बैठे रहे
लेकिन एक एक करके लोग पीछे से बदलते गए और अपनी अपनी तस्वीर निकलवाते गए,.
टीवी पर देखो मैं
दिख रहा हूं...
जो व्यक्ति अपनी एक फोटो के लिए इतना ललायित हो
सकता है वैसे लोग हमेशा आंदोलन का हिस्सा
नहीं हो सकते, ये लोग मौका परस्त लोग है,जाहिर है अन्ना एक बड़ी शख्सियत है लेकिन
अगर आप अन्ना के रास्ते नहीं चल सकते तो उनके आंदोलन को नुकसान तो कम से कम मत
पहुंचाईये, जब मैं अन्ना कि तस्वीर निकाल रहा था तो उसी वक्त एक आदमी को फोन पर
बोलते हुए सुना कि ¨ अरे टीवी खोल कर देख लो मैं दिख रहा हूं, संभवत: फोन पर उस पार व्यक्ति ने जब ये पूछा की किस चैनल
पर तो बोला कि कोई सा भी सभी बड़े मीडिया वाले पहुंचें हुए है¨.
अन्ना जब राजघाट से
निकले
अन्ना 20 मिनट बाद
उठे और फिर धीरे धीरे चलने लगे, इसी बीच कुछ लोगों ने उन्हे नमस्ते किया ,वो लोग
मराठी बोल रहे थे अन्ना ने भी मराठी में जवाब दिया और ख्याल रखने को कहा.चंद मिनट
पर अन्ना मीडिया के कैमरों से घिर गए, पत्रकार लगातार सवाल करते रहे, अन्ना जवाब
देते रहे, पत्रकारों ने कई तरह के सवाल किए अन्ना ने सबके जवाब भी दिए.
रामलीला मैदान पर
अन्ना
अन्ना जब 7 साल बाद रामलीला मैदान पहुंचे तो भीड़ 2000 के
करीब या उससे थोडा ज्यादा रही थी.मंच पर सिर्फ अन्ना और उनके कोर टीम के सदस्य थे,
राजनीतिक व्यक्ति का आंदोलन में स्वागत है लेकिन मंच पर किसी को जगह नहीं है. पुलिस
का रवैया भी पिछली बार की तरह नहीं था, इस बार पुलिस बात बात पर उलझने को तैयार
दिखी , 50000 रुपया हर दिन किराया लेने वाले राम लीला मैदान में शौच की कोई उचित
व्यव्स्था नहीं है .ऐसे में कम से कम एमसीडी पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान का तो
ख्याल रख लेती.
अन्ना ने खोली मोदी
की पोल
अन्ना ने जब वहां
लोगों को संबोधित किया तो एक एक करके मोदी सरकार की पोल खोल दी.अन्ना ने बताया की
43 चिट्ठीयों का एक जवाब भी पीएम मोदी ने नहीं दिया है. मोदी खुद को जन नेता कहते
है, लोकतंत्र का पुजारी कहते है और प्रदर्शनकारियों की ट्रैन ही कैंसल करवा देते
है. आनंदोल में लोग नहीं पहुंचे उसके लिए हथकंडे अपनाए जाते है.अगर पीएम इतने ही
ईमानदार है तो लोकयुक्त और लोकपाल की नियुक्ती क्यों नहीं करते.जाहिर है उनकी मंशा
में खोट है.
मोदी का मीडिया पर
दबाव !
चूंकि मैने इस
आंदोलन को पहले दिन से लेकर कवर किया तो शुरुआती दिन से अन्ना के आगे पीछे
राष्ट्रीय मीडिया घुम रही थी लेकिन स्टोरी कवर करने के बाद उसे टीवी पर नहीं
दिखाया गया. पिछले आंदोलन में मीडिया तो अन्ना के समर्थन में थी लेकिन इस बार वो
उसे जगह देने को तैयार नहीं है. जाहिए है जब देश का सबसे तेज चैनल बीजेपी अध्यक्ष
के 1 इंटरव्यू को 4 बार चलाता है और उस इंटरव्यू में बातो के बताशे बनाए जाते है
तो कई सवाल खड़े होते है.¨
हर जगह मोदी सरकार ने मीडिया पर दबाव बनाया है वो
चाहे धमकी देकर हो या फिर किसी तरह का प्रलोभन देकर¨. चूकि
मीडिया जब पिछली बार समर्थन दे रहा था तो इस बार दिक्कत क्या है ? इस बार मीडिया पहले से ही सरकार की चमचई कर रही
है तो ऐसे में जनता के साथ मीडिया खड़ी नहीं हो सकती !
मोदी सरकार अन्ना से बात नहीं करेगी !
खबर है कि पिछली
सरकार की तरह मोदी सरकार दिखने को तैयार नहीं है.वो अपने अख्खड़पन के कारण इस बार
चर्चे में है, मीडिया पर दबाव बनाए हुए मोदी सरकार को पता है कि इस बार मीडिया
अन्ना को वैसा कवरेज नहीं देगी. जाहिर है न अन्ना टीवी पर दिखेंगे और न लोग रामलीला
मैदान पर पहुंचेगे ,ऐसे में सरकार पर दबाव नहीं बनेगा तो जाहिर है कि मोदी सरकार
के लिए मुफिद मौका है कि वो अन्ना के आगे नहीं झुके.
खाली हाथ लौटेंग
अन्ना !
84 साल की उम्र मे
एक बुजुर्ग भूखे पेट लोकपाल और लोकायुक्त की मांग कर रहे है, किसानों के फलस की
सहीं कीमत मांग रहे है, स्वामिनाथन की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे है और 60
साल से उपर के किसान के लिए 5000 हजार का पेँशन, अन्ना मंदिर में रहते है और उन्हे
कुछ चाहिए भी नहीं ऐसे में 84 साल का बुजुर्ग आपके लिए अपनी जान की बाजी लगाने को
तैयार है , लेकिन जिस सरकार को आपने चुना है वो अंबानी से अपने पीठ पर धौल लगवा
सकता है लेकिन गरीबों के हक मांगने वाले से बात को तैयार नहीं है, सरकार अपने नशे
में है ऐसे में अन्ना का अंदोलन हिट हो या फ्लॉप लेकिन अन्ना के आगे सरकार झुकेगी
नहीं क्योंकि उसे 2019 की सत्ता हथियानी है, देश भी हिन्दुत्व और सोशल मीडिया ने
मशगूल है ,हकीकत से किसी का वास्ता है नहीं तो फिर कोई अचरज की बात नहीं होगी की
रालेगन के संत को दिल्ली से इस बार खाली हाथ ही लौटना होगा.
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