Sunday, May 10, 2015

तो आखिर गजेंद्र को मारा किसने ? ....... हत्या या आत्महत्या ?

22 अप्रैल को आम आदमी पार्टी ने किसानों के लिए रैली कर संसद को घेरने का कार्यक्रम रखा था । देश के कौने दृकौने से पहुचां किसान अरविदं केजरीवाल की पार्टी से ये उम्मीद कर पहुंचा कि क्या पता हर बात पर  धरना देने वाले केजरीवाल किसानों की रैली करते दृकरते ना जाने कब धरना पर बैठ जाये और जो सरकार जमीन छीनने की तैयारीमें हैं उससे कोई कदम उठाने से पहले दो बार सोचना पड़े । कोई ये सोच कर पहुंच गया की आम आदमीकी बात करने वाली पार्टी उसके सपनों के घर में कहीं बिजली जलाने लायक महौल पैदा कर दें । रैली में भीड़ भी अच्छी खासी थी और लोगों का उत्साह चरम पर था  कि इसी बीच एक दृएक कर के कई नेता भाषण देने के लिए खड़े होते चले गये और महौल में क्रांति पैदा होता चला गया । उसी बीच एकाएक एक व्यक्ति पेड़ पर से झाडू हिलाता नारे लगाता हुआ सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है जनता उत्साह से लबरेज तालियां और सीटी बजाना शुरू कर देती है, जनता के उत्साह को देखकर व्यक्ति रोमंचित हो उठता है और पेड़ में फंदा बांधना शुरू करता है ,कुछ लोग उसे नीचे से ही रूकने के लिए आवाज लगाते है लेकिन  वह नहीं रुकता है । जब उस शख्स ने फांसी लगा ली थी तो कुछ नेताओं नेपुलिस से गुहार लगायी की उसे उतारा जाये.. पुलिस ने फायर ब्रिगेड को सुचना भेजकर इंतजार करना मुनासिब समझा तो इसी बीच कुछ युवकों नें पेड़ पर चहड कर उसे उतारने में लग गये ,फंदा जैसे खुला वह व्यक्ति पेड़ से सीधे नीचे गिर पड़ा आनन- फानन में उसे अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया । मामला किसान का था और भरी महफिल  में किसान के आत्महत्या का तो सबसे पहले मृतक को देखने कांग्रेस के नेता अजय़ माकन पहुंचे फिर बाद में उनके साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी । उधर रैली में भाषण जारी थी और 12 मिनट कुछ सेकेंड भाषण देने के बाद केजरीवाल भी वहा से निकल कर उस व्यक्ति जिसका नाम गजेंद्र था उससे मिलने पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी । जब- जब देश में किसानों का मसला उठता है तो सियासत खुद ब खुद पैनी और धारदार होती चली जाती है और इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ  । गजेंद्र की मौत की खबर जैसे ही आयी वैसे ही आम आदमी पार्टी ने पुलिस की लापरवाही का मामला बताकर खुद को अलग करने की कोशिश की ,तभी पुलिस ने यह कहकर आम आदमी पार्टी को इस मामले के केन्द्र में ला खड़ा कियाकि पार्टी के लोग उनके काम को और फायर ब्रिगेड की गाड़ी कोवहा तक पहुंचने में मुशकिल खड़ा कर दिया । बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को दोषी साबित करने की कवायद ही शुरू की थी कि कांग्रेस ने बीजेपी की नीतियों और केन्द्र के तहत आने वाली दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहरा दिया। लोकसभा में देश के गृह मंत्री ने बताया की पुलिस को काम करने में व्यवधान पहुंचाया गया और सीटी बजाकर, नारे लगाकर गजेन्द्र को फांसी लगाने के लिए प्रोतसाहित किया गया।  दिल्ली पुलिस ने अलग-अलग धारओं में एफआईआर दर्ज किया है जिसमें आम आदमी पार्टी के नेताओं का नाम भी शामिल हैं। पोस्टमार्ट रिपोर्ट में फांसी लगने से ही मौत की पुष्टि हुई हैं। वहीं प्राथमिक जांच में यह बात भी कही जा रही है कि गजेंद्र की मौत पेड़ पर पैर फिसलने से हुई है  लेकिन इस मामले में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं से पुलिस पुछ-ताछ कर सकती है ऐसा हमारे सुत्रों का कहना हैं।  गजेंद्र की मौत का पूरा सच आने वाले कुछ समय में सबके सामने आ जायेगा लेकिन ऐसे सार्वजनिक जगह पर 10 हजार से ज्यादा लोगो की मौजूदगी के बीच एक आदमी का फांसी लगा कर जान दे देना कुछ बड़े सवाल खड़े कर जाता हैं। मै मौके पर मौजूद तो महीं था लेकिन होता तो मेरी पूरी कोशिश होती कि गजेंद्र को ऐसा करने से रोक दूं।तो क्या उस रैली में मौजूद एक भी ऐसा शख्य नहीं था कि गजेंद्र को पेड़ पर चढ़ने से रोक सके ? गजेंद्र को पेड़ पर फंदा बांधने से रोक सके ? गजेंद्र को फांसी लगाने से रोक सके ?  जिस मंच से इस रैली को संबोधित किया जा रहा था  उस मंच से उस पेड़ं की दूरी महज 100 मीटर से भी कम थी जिसे 2 मिनट के अंदर भीड़ के बीच से गुजर कर पहुंचा जा सकता था  लेकिन नेता मंच से ही बोलते रह गये, दिल्ली पुलिस को निर्देश देते रह गये और तब तक देर बहुत देर हो गयी । यह काम केवल किसी पार्टी या पुलिस का नहीं था ।वहां मौजूद हर एक व्यक्ति अपने कदम बढ़ाकर इस घटना को रोक सकता था !यह दुर्भाग्य ही रहा कि जिस पेड़ के उपर किसान गजेंद्र ने फांसी लगायी उस पेड़ के नीचे दिल्ली के शिक्षकखुद को स्थायी करने के लिए प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन वो लोग भी किसान के परिवारकी जिंदगी में आ रही सुनामी को नहीं रोक सके ।  जब ये घटनी हुई तो वहा नेता, किसान, पार्टी कार्यकर्ता ,आम जनता , मीडिया ,पुलिस ,दुकानदार कई प्रकार के लोग मौजूद थे  लेकिन किसी ने भी उसे रोकने और बचाने की जहमत नहीं उठाया और नतीजा आपके सामने हैं। तो इस मौत का जिम्मेदार कौन है,क्या वहां कोई भी एक शख्स ऐसा नहीं था जिसे लगा कि आज सूली पर एक बाप, किसान, मनवता की लटककर मौत हो जाऐगी । क्या यह महज आत्महत्या है। वहां मौजूद लोगों की जिम्मेदारी कुछ नहीं बनती। क्या हम आगे भी ऐसे ही तमाशबीन बनकर स्वार्थी बने रहने का भोग करेंगे या फिर इस हत्या और आत्महत्या से सबक लेकर कुछ बदलाव ला पायेंगे ।
ऋषि राज कि कलम से....

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